ये नजारा शाम के वक्त का हैं जब मै अपने गांव देवकली (गाजीपुर यूपी में है) को घूमने निकला। पास ही में एक छोटा सा तरांव रेलवे स्टेशन है । मै तो कुछ पौधे लेने के लिए निकला था जोकि रेलवे लाइन के उस पार मिल रहा था आते वक्त शाम को मैंने ये तस्वीर ले लीं।
पौधशाला के अंदर की तस्वीर है । जहां छोटे छोटे पौधों की नर्सरी देखी जा सकती है। चाहे कोई भी पौधा ले लीजिए 7 रुपए का ही मिलेगा। करीब 3 बजे घर से पैदल ही निकला था घूमने के लिए हलका धूप और छांव था।
बिना इस पुल के यहां तक पहुंचना नामुमकिन सा था । ये पुल हाल ही में बना है जो देवकली और तराव को जोड़ता है। पुराने पुल पे तो बाढ़ का पानी लगा हुआ था तो यही एक आसान रास्ता दिखा। चलते वक्त कुछ पंक्षी दिखे जो आमतौर बहुत कम देखने को मिलते है अब गांव में।
चलते चलते रास्ते ताड़ के बगीचों से गुजर कर निकलना था आखिर में ये जगह इसीलिए तो जानी जाती है।
तस्वीरों में साफ देख सकते है ताड़ के पेड़ को जिसके फल से ताड़ी निकलती है भोग विलास डूबे हुए लोग इसका आनंद हर तरीके से उठाते है। बहुत पहले भोजपुरी में गाना भी निकलता था " हमके ताड़ वाली ताड़ी चाही..!" ताड़ी पीना कोई गलत चीज नहीं पर हर चीज की अपनी एक हद होती है। चलते चलते रेलवे लाइन के पास आ पहुंचे तेज धूप निकल चुकी थी तपती हुई इस वक्त रेलवे के कर्मचारी अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रहे थे। ना जाने कितने ट्रेनें इधर गुजरती होंगी और ना जाने कितने अनगिनत यात्री यात्रा का लुत्फ उठाते हुए अपनी मंजिल को पहुंचे होंगे। तब बहुत से नजारे वो खिड़कियों से देखते होंगे।
इस तस्वीर को देखकर अपने बचपन की याद आ जाती है अपने दोस्तो के साथ खेलते घूमते हुए यहां तक पहुंचते थे कभी कभी तो यही सोचते विचारते थे कि रेल की पटरी कहा तक जाती होगी?
एक बोर्ड दिखा जिससे साफ मालूम हुआ कि जहां आना था आ चुका हूं। यहां से लिप्टस और सागवन के पौधे लिए और घर को रवाना हुए। अब शाम रही थी तो रास्ते में अपने पूर्वजों की निशानी का भी हाल चाल लेते चले। रेलवे लाइन के पास में हमारी जमीन थी सोचा देखते चलूं और साथ में पोखरिया पर (जगह का नाम) काली माई के दर्शन भी जाएंगे। लौटते वक्त और 2 तीन तस्वीरें ले ली मैंने ।
अब निकल पड़ा रास्ते घर की ओर सीधा वन विभाग के सामने से रेलवे लाइन पार करते ही एक रास्ता चला जा रहा है।
बहुत पुराने जमााने की ट्यूबवेल मशीन यह एक मात्र जरिया था पानी का खेतो तक पहुंचाने का जिनके खेत नदी से दूरी पर थे। और अभी भी ये अपना कार्य कर रहा है।
ये रहा कली माई का मंंदिर जिसके जिसके दर्शन बहुत दिनों के बाद हुए। इस मंंदिर की महिमा अपरमपार है। माता जहां स्थापित है ज्यों की त्यों है। इनकी मूर्ति को यहां स्थापित के मन्दिर का एक कमरा बना था पर किसी काम नहीं अब खाली ही पड़ा हुआ है और काली माता की मूर्ति वहीं नीम के छांव में विराजमान है। इसका भी अलग ही इतिहास है कहा जाता है कि मेरे पूर्वजों में से एक काली बाबा यहां तपस्या किए थे जिसके चलते यहां काली माई आई और इस स्थान को पवित्र कर दिया।
जय मां काली
मंदिर के पास में एक कुआ दिखा जो कभी गांव के लोगो की प्यास बुझाया करता था आजकल सुनसान पड़ा हुआ है। इस आधुुनिकता के जमाने में अब सबके घर में हैंडपंप लगा हुआ है किसी बाहर आने जाने की जरूरत भी नहीं पड़ती है। साथ में मोटर भी लगा हुआ है और बिजली हमेशा रहती है। स्टार्ट बटन दबाते ही हर हर पानी बहने लगता हैं ।इस कच्ची सड़क से लोगो के आने जाने में बहुत मदद मिलती है क्योंकि यही एक मात्र सहारा है गांव वालो का।
ये रहा ब्रह्म बाबा का मंदिर "जय हो ब्रह्म बाबा" । बाकी इधर उधर की तस्वीरें भी खींच लिया हूं।
इस बार लगभग सभी ने धान की खेती पर जोर दिया है। जिन्होंने बाजरा बोया था सब भारी बरसात में बह गया। धान को इसी भारी बारिश का इंतेजार रहता है। नदी को देख के साफ कहा जा सकता है कितनी ज्यादा बारिश हुई होगी।
इस पुल को देखिए डूब गया है जिससे लोगो को काफी दिक्कत सामना करना पड़ रहा है। 5 मिनट का रास्ता अब 20-25 मिनट का समय ले रहा है। कुछ दिनों में पानी पुल से नीचे उतर जाएगा इसमें घबाराने वाली कोई नई बात नहीं है यहां के लोगो के लिए।
पौधों को लेकर घर आ गये। अब इसको कल अच्छे से लगा दिया जायेगा। वृक्षारोपण का शाब्दिक अर्थ है। वृक्ष लगाकर उन्हें उगाना इसका प्रयोजन करना है। प्रकृति के संतुलन को बनाए रखना। मानव के जीवन को सुखी, सम्रद्ध व संतुलित बनाए रखने के लिए वृक्षारोपण का अपना विशेष महत्व है। मानव सभ्यता का उदय तथा इसका आरंभिक आश्रय भी प्रकृति अर्थात वन व्रक्ष ही रहे हैं। मानव को प्रारम्भ से प्रकृति द्वारा जो कुछ प्राप्त होता रहा है। उसे निरन्तर प्राप्त करते रहने के लिए वृक्षारोपण अती आवश्यक है।
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